MDH , EVEREST , Masala Banned in Other country . Stop eating this ???
नमस्कार दोस्तों!
धूम्रपान और शराब आपकी सेहत के लिए हानिकारक है।ये तो हम सब जानते हैं।इनसे कैंसर जैसी जानलेवा बिमारियां हो सकती हैं।हार्ट अटैक के चांसिस बढ़ सकते हैं।लेकिन आज के इस नए भारत में,अगर कोई अपने खाने में स्वाद डालना चाहे,तो वो भी आपकी सेहत के लिए हानिकारक हो चुका है।
5 एप्रिल, 2024 को,
हॉंग कॉंग के फूड सेफटी सेंटर की तरफ से पहली नोटिफिकेशन आई थी।
इन्होंने MDH के तीन मसालों का नाम लिया,
मदरास करी पाउडर, करी पाउडर और सांभर मसाला।इसके एलावा एक एवरेस्ट का प्रोडक्ट फिश करी मसाला।इन सब में इथाइलीन ओक्साइड की बहुत ज्यादा मात्रा पाई गई एक ऐसा केमिकल है, जिसके सेवन से कैंसर का डारेक्ट लिंक है,और कई देशों में इसका इस्तिमाल करना पूरी तरीके से Banned है।सिंगापूर देश की फूड एजेंसी ने अलग से टेस्टिंग करी,और एवरेस्ट के फिश करी मसाले में यही चीज पाईर जल्द ही वहाँ पर भी इन्हें बैन किया जा सकता है।लेकिन कहानी यहाँ पर खतम नहीं होती,थोड़ा और गहराई से जाच करी तो पता चला,पिछले चार सालों में यूरोपियन यूनियन की फूड सेफटी अथोरिटीज न पान सो से ज्यादा अधिक इंडियन प्रोडक्ट्स को या तो बैन कर दिया है या रिकॉल कर दिया है।
527 ऐसे प्रोड़क्ट्स जिनमें इथाइलीन ओक्साइड पाया गया फिर से।इनमें सिर्फ मसाले ही नहीं बल्कि हर चीज़ शामिल है नट्स, सीड्स, हर्ब, स्पाइसिस, सीरियल्स,फल, सबजिया, फ्लेवर्स, आइस क्रीम, थिकनर, सौर भी बहुत कुछ।इतना ही नहीं, पिछले 6 महीने में MDH ने जितने मसाले अमेरिका में भेजे,
US Custom Authorities ने उनमें से 31% मसालों को वापस भेज दिय कहा कि उनमें साल्मोनेला पाया गया है।ये एक बैक्टिरिया है जिससे फूड पॉइजनिंग होती है।दस लगना, फीवर आना, वॉमिटिंग और सिवियर केसिस में आपके नर्वस सिस्टम को भी चोट पहुचा सकता है।हालत इतनी गंभीर है और ये सारी खबरे हमें सिर्फ इसलिए पदा चल पारी हैं क्योंकि दूसरे देशों की अथॉरिटीज अपना काम कर रही हैं।
आइए समझते हैं गहराई से कि ये कौन से केमिकल्स हैं जो पाए जा रहे हैं, क्यों पाए जा रहे हैं।क्या इसके पीछे असली कारण है और आप अपनी सेहत को बचाने के लिए यहाँ पर क्या कर सकते हैं।
एवरेस्ट कंपनी से जब पूछा गया कि उनके मसाले ऐसे क्यों निकल रहे हैं तो उन्होंने क्या जवाद दिया।कि हमें तो नेसिसरी क्लियरेंसिस और अप्रूवल स्पाइस बोर्ड आफ इंडिया नहीं दिया था।
स्पाइस बोर्ड आफ इंडिया क्या है?
इंडियन गवर्मेंट की रेगिलेटरी अथॉरिटी है जो कि आती है Ministry of Commerce and Industry के अंडर।इसके अलावा हमारे खाने में कैंसरस केमिकल्स है या नहीं ये जाच करने की जिम्मेदारी है FSSAI की Food Safety and Standards Authority of India जो कि आती है Ministry of Health and Family Welfare के अंडर।और ये सिर्फ हमारे देश की बात नहीं है।दूसरे देशों के Food Authorities भी उनकी सरकारों के अंडर आते हैं।और वो सारे देश कमसे कम अपने देशवासियों की Health की परवा तो कर रहे हैं।कमसे कम ये तो कह रहे हैं कि आपका खाना खतरनाक है इन मसालों से दूर रहो।हमारी सरकार के मुझे से एक शब तक नहीं निकला है।
FSSAI की तरफ से एकलौता रिस्पॉंस ये आया है कि हमें 20 दिन चाहिए इन मसालों की टेस्टिंग कराने के लिए फिर हम देखेंगे कि ये हानीकारक है या नहीं है।
इन्हें 20 दिन चाहिए यहाँ पर एक आम आदमी ने अपनी तरफ से टेस्टिंग करा ली और कुछ ही दिनों के अंदर टेस्ट रिजट्स आ भी गए।और FSSI वो यूनिट है जिनोंने 20 दिन मांगे ये जवाब देने के लिए कि इसके अंदर एथाइलिन ओक्साइड प्रेजेंट है या नहीं है।इसकी लिमिट है 0.1 मिलिग्राम पर किलोग्राम यानि कि ये लिमिट से 70 गुना ज्यादा मातरा में कैंसर कॉजिंग केमिकल मौजूद था।दोहजार बीस से लेकर आज तक जैसा मैंने बताया European Union 527 इंडियन प्रोडक्ट्स को रिजेक्ट कर चुका है या बैन कर चुका है।
और अगर उन देशों पर यकीन नहीं होता तो इस रिपोर्ट को ही देख लो।
Formigation शब्द का मतलब होता है Disinfect करना या Sterilize करना।जितने हानीकारक किटानू और बैक्टीरिया होते हैं खाने में उन्हें मारना।Ethylene Oxide का एक गैस के फॉर्म में इस्तिमाल किया जाता है।ये गैस किसी भी material की packaging के थ्रू बड़ी असानी से फ्लो कर जाती है।और काफी आसान और efficient तरीके से इसका इस्तिमाल किया जा सकता हैDisinfect करने के लिए।ये गैस अपने आप में colorless है तो आपको दिखेगी नहीं लेकि flammable जरूर है यानि कि आग लग सकती है इस पर।इससे E.coli और Salmonella जैसे harmful bacteria को मारा जा सकता है।साथ ही साथ fungus के खिलाफ भी इसका इस्तिमाल किया जा सकता है Interesting चीज़ यह है कि फसल उगाते समय इसका इस्तिमाल नहीं किया जाता,बल्कि मसालों की packaging करते समय इसका इस्तिमाल किया जाता है।तो अगर मसालों में ethylene oxide की बहुत ज्यादा मात्रा पाई जाती है,तो उस किसान की गलती नहीं है जो फसल को उगा रहा हैबल्कि उस company की जिम्मेदारी है,जो post-harvest treatment के दौरान,और packaging करने से पहले ethylene oxide का इस्तिमाल कर रही है।प्रॉब्लम स्टोरेज के वक्त आ रही है जो involved है,ethylene oxide की sterilization के दौरान,सबसे पहले pre-conditioning होती है,humidity, temperature, pressure control check किया जाता है,फिर इस gas के दौरा sterilization किया जाता है और फिर उस gas की evacuation और gas washing करी जाती है।
यह जो तीसरा process है,इसका नाम है aeration,और यह बहुत-बहुत जरूरी process है,क्योंकि यहाँ पर इस chemical कोवापस से बाहर निकालने का काम किया जाता है।nitrogen injections और vacuum degassing का इस्तिमाल किया जाता है,इस chemical को खतम करने के लिए।ग्रूप 2A में वो चीज़ें हैं जिनसे प्रॉबबली cancer होता है इंसानों को।ग्रूप 2B में वो चीज़ें है जिनसे possibly हो सकता है कैंसर इंसानों को।और group 3 वाली चीज़ें nonclassifiable हैं।तो group 1 वाली चीज़ें सबसे ज्यादा खतरनाक हैं। अलग-अलग केमिकल्स की जो ग्रुप वन में आते हैं।कई सारी चीज़ें आती हैं इसमें,जैसे कि कोईला, टोबैको, एल्यूमिनियम की प्रोडक्शन,डीजल इंजन का एक्जॉस्टऔर इनमेंसे एक एंट्री यहाँ पर इथाइलीन ऑक्साइड की भी है।इसके बारे में तो यह तक कहा गया है किलोग लेवल्स पर इथाइलीन ऑक्साइड से,लिम्फोईड कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है।अगर आप इस गैस को इन्हेल करते हो,इससे सेलुलर मेटीरियल में आपके परमानेंट म्यूटेशन्स हो सकती हैं।जो कि आपकी आने वाली पीडियों में भी पास ओन करी जा सकती हैं।यही कारण है कि यूरोपियन यूनियन की जीरो टॉलेरेंस पॉलिसी है इथाइलीन ओक्साइड को लेकरना सिर्फ इन्होंने अपने सारे यूरोपियन देशों मेंकंप्लीटली बैन कर दिया इथाइलीन ओक्साइड को,मतलब ETO का इतना सा रेजिड्यू रह गया तो चलता है,लेकिन इससे ज्यादा अलाउड नहीं है।लेकिन इस लिमिट को भी 2022 में यूरोपियन कमिशन ने और भी कम कर दिया है।इन्होंने कहा 0.2 भी नहीं, 0.1 मिलिग्राम पर किलोग्राम नहीं लिमिट होगी।
अमेरिका में जो MDH मसालों की shipments को reject किया गया,वो साल्मोनेला की वजह से किया गया।आइरेनी की बात देखो यहाँ पर क्या है,मैंने आपको बताया था,ETO का इस्तिमाल किया जाता है,साल्मोनेला जैसे बैक्टीरिया को मारने के लिए,
[उन्हें रिफ्यूज कर दिया गया साल्मोनेला की वजह से।लेकिन इसके अगले पीरियड में,ऑक्टूबर 2023 से लेकर जो अभी तक का समय है,यह रिजेक्शन का रेट 31% पर था।टोटल में 11 शिप्मेंट को रिजेक्ट किया गयाजिनमें स्पाइसिस, फ्लेवर्स और सॉल्ट्स थे MDH के।और एक शिप्मेंट का मतलब,यहाँ पर एक प्रॉड़डक्ट नहीं है।एक शिप्मेंट, यहाँ पर एक कार्टन भी हो सकता हएक ट्रक लोड भी हो सकता है,एक्जाक्ट कोड सुनिये,एक्विप्मेंट और यूटेंसिल्स इनके इस तरीके से डिजाइन ही नहीं किये गए,कि उन्हें क्लीन किया जा सके, मेंटेन किया जा सके,कंटैमिनेशन के अगेंस्ट प्रोटेक्ट किया जा सके।बात यहाँ सिर्फ MDH के मसालों के नहीं है,फाइनांचल येर 2020 और 2023 के बीच में,अमेरिका ने 786 शिप्मेंट्स को रिजेक्ट किया,जो इंडिया से आ रही थी।टोटल में 3,925 human food export की शिप्मेंट्स इंडिया से US भेजी गई थी।यानि कि 20% रिजेक्ट हो गई सैल्मोनेला की वजह से।इसमें सिर्फ मसाला ही नहीं थे, इसमें विटामिन्स, मिनिरल्स, प्रोटीन्स, बेकरी प्रोडक्ट, सीफूड प्रोडक्ट्स भी थे।हेडलाइन पढ़ो इस आर्टिकल की क्या है।इंडिया से जो आने वाला समान है,उसका रिजेक्ट होने का चांस 7 गुना ज्यादा है,चाइना से आने वाले समान के कंपैरिजन में हमारे देश के स्टैंडर्ड्स को इतना गिरा दिया गया है।और बात यहाँ सिर्फ इथाइलीन ओक्साइड और सैल्मन एला तक सीमित नहीं रहती।पिछले साल की इस ख़बर को भी देखो।
14 नवेंबर 2023,इस यूरोपियन कमिशन ने अलाम साउंड किया इंडिया से आने वाले टर्मिरिक को लेकर।जहाँ पर एक खतरनाक जान लेवा पेस्टिसाइड,क्लोर पाईरीफोस पाया गया।यह पेस्टिसाइड कई देशों में बैंड है,क्योंकि इससे बच्चों की ब्रेन ग्रोथ पर फरक पड़ता है।इसलिए मैं कह रहा हूँ कि यह प्रॉबलम कुछ मसालों से कहीं ज्यादा बढ़कर है,और यह चीज़े पिछले कई सालों से देखी जा रही है।यूरोप में चेतावनी की घंटी साल 2020 में,बेलजियम के द्वारा बजाई गई थी,जब भारतिये सेसिमी सीड्स,यानि तिल में इथाइलीन ओक्साइड पाया गया था।तब से लेकर आज तक यह इतनी सारी चीज़ों में पाया जा चुका है।सीरियल्स, चॉकलेट्स, बिस्किट्स, ब्रेट, क्रैकर, स्पाइसिस।और तो और खेतों में जो जानवरों को खाना खिलाया जाता है,उसमें भी यह पाया गय इस बेलजियम वाले इंसिडेंट के बाद ही था,कि यूरोपियन फूड सेफ्टी एजन्सी ने इंडियन इंपोर्टिट खाने को सीरियसली लेना शुरू किया।इनका एक इंफोर्मेशन नेटवर्क है,यूरोपियन रैपिड एलर्ट सिस्टम फर फूड और फीड,
जिसका शॉर्टफर्म है RASFF.
इनका जो डेटा होता है, ये पब्ली के लिए अवेलेबल है,तो आप खुद भी जाकर चेक कर सकते हो इनकी वेबसाइट पर।मार्च 2019 और मार्च 2024 के बीच में कहा कि CIBRC तो field trials conduct ही नहीं करता pesticides के।जितना भी data है वो सारी manufacturing companies के द्वारा provide किया जाता है,और CIBRC तो सिर्फ approve करता है pesticides को उस data के आधार पर।
Written by - NUTKHUT
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